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धीमी, हलकी बहती धारा, समा  लेती है,  जिस तरह,  बदलते रूख़  को, बाँचतीं हैं आप, अपने भीतर  उस भाँती, हमारे अंतर्भाव, विचलित, नादान से अन्तःस्वर।। स्वयं में अपनातीं हैं, सहलातीं हैं, प्यार से दुलरातीं हैं, जज़्बातों की वो तमाम परतें।  अनकहे, अनसुने से शब्द लिए, बिना हमारे जान पड़े, सूक्ष्मता से  हैं पिरोती, आप, पिता के जाने के बाद के  वो आँखों से टपकते मोती, मन के, ज़हन के, विचलित, चंचल  मोती।। सुलझातीं हैं, सोचों की हर फाँस, विचारो में छिपे विकार, समा लेती हैं अपने, नभ से भी विशाल  अपने अरुणाचल में हमें ।  प्रेरित करतीं है, ज़ाहिर करें हम भी  बच्चो को, नयी पीढ़ी से  यही स्नेह , यही दिलसोज़ी।। जन्मदिन बहुत बहुत शुभ हो बुआ,  आपको हार्दिक चरणस्पर्श। .  शाम्भवी दास।